NARAYAN KRASHNAN BIOGRAPHY IN HINDI 2020

NARAYAN KRASHNAN BIOGRAPHY IN HINDI 2020


नारायण कृष्णन अपने माता-पिता से मिलने के लिए मदुरै गए,

 वहां उन्होंने देखा कि भूख से व्याकुल एक वृद्ध आदमी 

अपना मलमूत्र ही खा रहा था 

उस वाकये को याद करते हुए कृष्णन बताते हैं कि 

यह वाकई मुझे इतना दुख पहुँचाया कि

 मैं सचमुच कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गया। 

फिर मैंने उस आदमी को खिलाया और फैसला किया कि

 अब मैं अपने जीवनकाल के बाकी समय जरुरतमंदों की सेवा के लिए ही दूँगा


हीरो एक ऐसा मजबूत शब्द है जिसका इस्तेमाल वैसे लोगों 


के लिए किया जाता है जो औरों से कुछ अलग करते हैं। हालांकि हर लोगों के लिए हीरो के मायने भी अलग-अलग होते लेकिन कायदे से  असली हीरो वही है जो 


दूसरों की सलामती और समाज सेवा के भाव से कुछ अनूठा काम करने की हिम्मत रखता है।

15 वर्षों से उन्होंने करोड़ों लोगो को खिला रहे है खाना 


आज की मतलबी दुनिया में जहाँ लोग अपने माता-पिता तक के त्याग और बलिदान को भूल जाते हैं तो दूसरों के लिए खुद के त्याग की बात करने 


का कोई औचित्य ही नहीं है। लेकिन आज भी हमारे समाज में ऐसे कुछ लोग हैं जिन्होंने समाज सेवा के भाव से अपना जीवन न्योछावर कर दिया है।


 34 वर्षीय नारायण कृष्णन इन्हीं लोगों में एक हैं। पिछले 15 वर्षों से उन्होंने करोड़ों बेघर, अनाथ और भूखे लोगों की थाली में भोजन परोसा है।


एक वाकये ने जिंदगी बदल कर रख दी

दरअसल नारायणन कृष्णन प्रतिष्ठित ताज होटल में बतौर शेफ अपने कैरियर की शुरुआत की थी और फिर उन्हें स्विट्जरलैंड में एक पांच सितारा होटल 


में काम करने का न्योता मिला। इन सबों के बीच साल 2002 में हुए एक वाकये ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल कर रख दी। यूरोप रवाना होने से पहले, वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए मदुरै गए, वहां उन्होंने देखा कि भूख से व्याकुल 


एक वृद्ध आदमी अपना मलमूत्र ही खा रहा था।
उस वाकये को याद करते हुए कृष्णन बताते हैं कि यह वाकई मुझे इतना दुख पहुँचाया कि मैं सचमुच कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गया। फिर मैंने उस 


आदमी को खिलाया और फैसला किया कि अब मैं अपने जीवनकाल के बाकी समय जरुरतमंदों की सेवा के लिए ही दूँगा।



कोविंद का सम्बन्ध कोरी या कोली जाति से है जो उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती है.

साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पारंगत नेपाली की पहली कविता 'भारत गगन के जगमग सितारे' 1930 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा संपादित बाल पत्रिका में 


प्रकाशित हुई थी। पत्रकार के रूप में उन्होंने कम से कम 4 हिन्दी पत्रिकाओं- रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और योगी का संपादन किया।

रामधारी सिंह 'दिनकर भी उनके  मुरीद हुए 


युवावस्था में नेपालीजी के गीतों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर उन्हें आदर के साथ कवि सम्मेलनों में बुलाया जाने लगा। उस दौरान एक कवि सम्मेलन में राष्ट्रकवि रामधारी


 सिंह 'दिनकर' उनके एक गीत को सुनकर गद्गनद् हो गए। वह गीत था-



सुनहरी सुबह नेपाल की, ढलती शाम बंगाल की

कर दे फीका रंग चुनरी का, दोपहरी नैनीताल की



क्या दरस-परस की बात यहां, जहां पत्थर में भगवान है

यह मेरा हिन्दुस्तान है, यह मेरा हिन्दुस्तान है...

पत्नी थी नेपाल के राजपुरोहित के परिवार से 



नेपालीजी के गीतों की उस दौर में धूम मची हुई थी लेकिन उनकी माली हालत खराब थी। वे चाहते तो नेपाल में उनके लिए सम्मानजनक व्यवस्था हो सकती थी, 


क्योंकि उनकी पत्नी नेपाल के राजपुरोहित के परिवार से ताल्लुक रखती थीं लेकिन उन्होंने बेतिया में ही रहने का निश्चय किया।


'मजदूर' के लिए नेपाली ने   लिखे गीत

वर्ष 1944 में मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्मीस्तान के मालिक सेठ तुलाराम जालान से हुई जिन्होंने नेपाली को 200 रुपए प्रतिमाह पर गीतकार के रूप में 



अक्षय  नाम से  सामाजिक संगठन की शुरुआत 

इसी विचार के साथ कृष्णन ने विदेश जाने के अपने फैसले को अलविदा कर ‘


अक्षय’ नाम से एक सामाजिक संगठन की शुरुआत की। इस संगठन का एकमात्र उद्येश्य था कोई भी गरीब भूखा नहीं सोए।

भिखारियों के बाल तक खुद ही काटते है 

कृष्णन रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने हाथों से खाना बनाते हैं, फ़िर अपनी टीम के साथ वैन में सवार होकर मदुरै की सड़कों पर करीब 200 किमी का चक्कर लगाते हैं तथा जहाँ कहीं भी उन्हें सड़क किनारे भूखे, नंगे, पागल, बीमार, अपंग, बेसहारा, बेघर लोग दिखते


 हैं वे उन्हें खाना खिलाते हैं। रोजाना उनकी टीम दिन में दो बार चक्कर लगाती है और करीब 400 लोगों को खाना खिलाती। इतना ही नहीं साथ-साथ वे भिखारियों के बाल काटना और उन्हें नहलाने का काम भी कर डालते हैं।

 रोजाना 20 हजार रुपए होते है  खर्च 

इस कार्य के लिए कृष्णन को रोजाना 20 हजार रुपए का खर्च उठाना पड़ता है। डोनेशन से मिलने वाला पैसा करीब 22 दिन ही चल पाता है जिसके 


बाद बाकि के दिनों का खर्च वे स्वयं ही उठाते हैं। वे अपने घर के किराये को भी गरीबों का पेट भरने में इस्तेमाल करते हैं। और खुद ट्रस्ट के किचन में अपने कर्मचारियों के साथ ही सोते हैं।

एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को खिला चुके है खाना 

34 वर्षीय कृष्णन अब तक मदुरई के एक करोड़ से भी ज्यादा 


लोगों को सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना खिला चुके हैं। वह नि:स्वार्थ भाव से जनसेवा में लगे हुए हैं। ऐसे समाज सेवकों पर देश को गर्व है



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